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श्री कृष्‍ण शरणम् मम:

Monday, December 21, 2009

MAHA KUMBH MELA 2010 HARIDWAR

MAHA KUMBH MELA 2010

Introduction of Kumbh Mela

Kumbh Mela is the largest religious gathering in the world. Kumbh Mela is a sacred Hindu pilgrimage that occurs four times every twelve years and rotates among four locations of India: Allahabad, Haridwar, Ujjain, and Nasik. During this Kumbh Mela, which is considered to be the most important Hindu spiritual gathering, thousands of sadhus and pilgrims come from all over India and abroad. The most important features of this Mela are furious and exotic Naga Sadhus covered in ash, matted hairs and are known as preserver of faith.

- Prayag (near the city of Allahabad, in the state of Uttar Pradesh) at the confluence of three rivers Ganga (Ganges), Yamuna and Saraswati.

- Haridwar (in the state of Uttaranchal) where the river Ganga enters the plains from Himalayas

- Ujjain (in Madhya Pradesh), on the banks of Ksipra river, and

- Nasik (in Maharashtra) on the banks of Godavari River.

The History behind Kumbh Mela

Kumbh's history is very old and originates from dates back to the time when Amrita Kalasha (pot of nectar of immortality) was recovered from Samudramanthan (the churning of the primordial sea). During this churning process, the Mandara Mountain was used as a churning rod, and Vasuki, the king of serpents, acted as the rope for churning. In this entire churning process, Dhanwantari, the divine healer, appeared with the "Kumbh" containing nectar in his palms, when the Kumbha (pot) containing the Amrita Kalasha appeared. After this a tense war between Devtas (Gods) and Asuras (Demons) ensued.

For twelve days and twelve nights (equivalent to twelve human years) the gods and demons fought in the sky for the possession of this pot of amrita. And it is said that during the battle, drops of amrita fell on to four places: Allahabad, Haridwar, Ujjain and Nasik. To commemorate this holy event of the Amrita Kalasha Kumbh is celebrated at these four places.





Upcoming Kumbh Mela

The last Kumbh Mela was hosted at Allahabad in Jan 2007 during the months of Jan - Feb. During this 45 days carnival, more than 65 million Hindu pilgrims took part and make it the largest gathering.

The next Kumbh Mela is going to take place at Haridwar in 2010 from 1st January – 30 April. Apart from this, the dates for the 2010 Kumbh Mela-

- 14 January 2010 (Thursday) - Makar Sankranti Snan - First Snan (bath)

- 15 January 2010 (Friday) - Mauni Amavasya and Surya Grahan (Solar Eclipse) - Second Snan

- 20 January 2010 (Wed) - Basant Panchmi Snan - Third Snan

- 30 January 2010 (Saturday) - Magh Purnima Snan - Fourth Snan

- 12 February 2010 (Friday) - Maha Shivratri - Pratham Shahi Snan - First Royal Bath

- 15 March 2010 (Monday) - Somvati Amavasya - Dvitya Shahi snan - Second Royal Bath.

- 24 March 2010 (Wednesday) - Ram Navmi - Fifth Snan

- 30 March 2010 (Tuesday) - Chaitra Purnima snan

- 14 April 2010 (Wednesday) - Baisakhi - Pramukh Shahi Snan.

- 28 April 2010 (Wednesday) - Shakh Purnima – Snan

Shahi Snaan (Royal Bath) for six Akharas of Vaishnav and Udasi sects: March 15, March 30, and April 14, 2010

Haridwar Welcomes You for Kumbh Mela, 2010

Located on the foothills of Shivaliks, Haridwar is known as Tapovan, Mayapuri, Gangadwar and Mokshadwar in the ancient scriptures. Haridwar is one of the four holy sites for Kumbh Mela and among the seven sacred cities of India. It is a city with enormous religious significance and a key pilgrimage town for the Hindus. The next upcoming Kumbh Mela in Haridwar is in 2010. As always, millions of sadhus are expected to come for taking dips in the Ganges on this time. So, this time let your heart soak in all the spirituality to the holy land of Haridwar in Kumbh Mela of 2010.

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Sunday, July 8, 2007

श्रीबालकृष्‍ण ही श्रीनाथजी है (Child Krishna is The Shrinathji)





।।जय श्री कृष्‍ण ।।


भगवान श्रीनाथजी का प्राकट्य :- भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों की विनती पर आशीर्वाद दिया, समस्त दैवीय जीवों के कल्याण के लिये कलयुग में मैं ब्रजलोक में श्रीनाथजी के नाम से प्रकट होउंगा । उसी भावना को पूर्ण करने ब्रजलोक में मथुरा के निकट जतीपुरा ग्राम में श्री गोवर्धन पर्वत पर भगवान श्रीनाथजी प्रकट हुये । प्राकट्य का समय ज्यों ज्यों निकट आया श्रीनाथजी की लीलाएँ शुरु हो गई । आस पास के ब्रजवासियों की गायें घास चरने श्रीगोवेर्धन पर्वत पर जाती उन्हीं में से सद्द् पाण्डे की घूमर नाम की गाय अपना कुछ दूध श्रीनाथजी के लीला स्थल पर अर्पित कर आती । कई समय तक यह् सिलसिला चलता रहा तो ब्रजवासियों को कौतुहल जगा कि आखिर ये क्या लीला है, उन्होंने खोजबीन की, उन्हें श्रीगिरिराज पर्वत पर श्रीनाथजी की उर्ध्व वाम भुजा के दर्शन हुये। वहीं गौमाताएं अपना दूध चढा आती थी।उन्हें यह् दैवीय चमत्कार लगा और प्रभु की भविष्यवाणी सत्य प्रतीत होती नजर आयी । उन्होंने उर्ध्व भुजा की पुजा आराधना शुरु कर दी। कुछ समय उपरांत संवत् 1535 में वैशाख कृष्ण 11 को गिरिराज पर्वत पर श्रीनाथजी के मुखारविन्द का प्राकट्य हुआ और तदुपरांत सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य हुआ। ब्रजवासीगण अपनी श्रद्धानुसार सेवा आराधना करते रहे।
इधर प्रभु की ब्रजलोक में लीलायें चल रही थी, उधर श्रीमहाप्रभुवल्लभाचार्यजी संवत 1549 की फ़ाल्गुन शुक्ल 11 को झारखण्ड की यात्रा पर शुद्वाद्वैत का प्रचार कर रहे थे। श्रीनाथजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दे आदेश प्रदान किया कि ब्रजलोक में मेरा प्राकट्य हो चुका है, आप यहाँ आयें और मुझे प्रतिष्ठित करें। श्रीमहाप्रभुवल्लभाचार्यजी प्रभु की लीला से पुर्व में ही अवगत हो चुके थे, वे झारखण्ड की यात्रा बीच में ही छोड मथुरा होते हुये जतीपुरा पहँचे । जतीपुरा में सददू पाण्डे एवं अन्य ब्रजवासियों ने उन्हें देवदमन के श्रीगोवर्धन पर्वत पर प्रकट होने की बात बताई । श्रीमहाप्रभुवल्लभाचार्यजी ने सब ब्रजवासियों बताया की लीला अवतार भगवान श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ है, इस पर सब ब्रजवासी बडे हर्षित हुये।
श्रीमहाप्रभुवल्लभाचार्यजी सभी को साथ ले श्रीगोवर्धन पर्वत पर पहँचे और श्रीनाथजी का भव्य मंदिर निर्माण कराया और ब्रजवासियों को श्रीनाथजी की सेवा आराधना की विधिवत जानकारी प्रदान कर उन्हें श्रीनाथजी की सेवा में नियुक्त किया।
मुगलों के शासन का दौर था, समय अपनी गति से चल रहा था प्रभु को कुछ और लीलाएं करनी थी। दूसरी और उस समय का मुगल सम्राट औरंगजेब हिन्दू आस्थाओं एवं मंदिरों को नष्ट करने पर आमदा था। मेवाड में प्रभु श्रीनाथजी को अपनी परम भक्त मेवाड राजघराने की राजकुमारी अजबकुँवरबाई को दिये वचन को पूरा करने पधारना था। प्रभु ने लीला रची। श्री विट्ठलनाथजी के पोत्र श्री दामोदर जी उनके काका श्री गोविन्दजी, श्री बालकृष्णजी व श्रीवल्लभजी ने औरंगजेब के अत्याचारों की बात सुन चिंतित हो श्रीनाथजी को सुरक्षित स्थान पर बिराजमान कराने का निर्णय किया। प्रभु से आज्ञा प्राप्त कर निकल पडे।
प्रभु का रथ भक्तों के साथ चल पडा, मार्ग में पडने वाली सभी रियासतों (आगरा, किशनगढ कोटा, जोधपुर आदि) के राजाओं से, इन्होने प्रभु को अपने राज्य में प्रतिष्ठित कराने का आग्रह किया, कोई भी राजा मुगल सम्राट ओरंगजेब से दुश्मनी लेने का साहस नही कर सके, सभी ने कुछ समय के लिये, स्थायी व्यवस्था होने तक गुप्त रूप से बिराजने कि विनती की, प्रभु की लीला एवं उपयुक्त समय नही आया मानकर सभी प्रभु के साथ आगे निकल पडे।
मेवाड में पधारने पर रथ का पहिया सिंहाड ग्राम (वर्तमान श्रीनाथद्वारा) में आकर धंस गया, बहुतेरे प्रयत्नों के पश्चात भी पहिया नहीं निकाला जा सका, प्रभु की ऎसी ही लीला जान और सभी प्रयत्न निश्फल मान, प्रभु को यहीं बिराजमान कराने का निश्चय किया गया तत्कालीन महाराणा श्री राजसिंह जी ने प्रभु की भव्य अगवानी कर वचन दिया कि मैं पभु को अपने राज्य में पधारता हूँ, प्रभु के स्वरूप की सुरक्षा की पूर्ण जिम्मेदारी लेता हूँ आप प्रभु को यही बिराजमान करावें संवत १७२८ फाल्गुन कृष्ण ७ को प्रभु श्रीनाथजी वर्तमान मंदिर मे पधारे एवं भव्य पाटोत्सव का मनोरथ हुआ और सिंहाड ग्राम श्रीनाथद्वारा के नाम से प्रसिद्ध हुआ तब से प्रभु श्रीनाथजी के लाखों, करोंडो भक्त प्रतिवर्ष श्रीनाथद्वारा आते हैं एवं अपने आराध्य के दर्शन पा धन्य हो जाते हैं।श्रीनाथजी के दर्शन : प्रात - १. मंगला २. श्रृंगार ३. ग्वाल ४. राजभोग सायं ५. उत्थापन ६. भोग ७. आरती ८. शयन (शयन के दर्शन आश्विन शुक्ल १० से मार्गशीर्ष शुक्ल ७ तक एवं माघ शुक्ल ५ से रामनवमी तक, शेष समय निज मंदिर के अंदर ही खुलते हैं, भक्तों के दर्शनार्थ नहीं खुलते हैं ।)


।। क्‍लीं कृष्‍णाय गोविन्‍दाय गोपीजनवल्‍लभाय नम: ।।

।। श्री कृष्‍ण शरणम् मम: ।।

आपके सुझाव आमंत्रित हैं।
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shrinathji Nathdwara

श्रीनाथजी के मन्दिर में दर्शन

शीतकाल में

प्रात:कालीन समय
1. मंगला 5 बजे से 5-45 बजे तक 2. श्रृंगार 6-45 से 7-15 तक 3. ग्‍वाल 8-45 बजे से 9-15 तक 4. राजभोग 10-30 से 11-15 तक

सायंकालीन समय
5. उत्‍थापन 3-30 से 3-45 बजे तक 6. भोग 4-00 से 4-15 बजे तक 7. आरती 4-30 से 5-15 तक 8. शयन 6-45 बजे से 7-30 बजे तक

ग्रीष्‍मकाल में


प्रात:कालीन समय
1. मंगला 5-45 बजे से 6-30 बजे तक 2. श्रृंगार 7-00 से 7-30 जक 3. ग्‍वाल 9-00 बजे से 9-30 तक 4. राजभोग 11-00 से 11-45 तक

सायंकालीन समय
5. उत्‍थापन 3-45 से 4-00 बजे तक 6. भोग 4-15 बजे से 4-30 बजे तक 7. आरती 5-00 से 5-45 तक 8. शयन 7-00 बजे से 7-45 बजे तक

मंदिर में दर्शन पुष्टिमार्गीय मर्यादा एवं परम्परा से होते हैं, जो अन्य संप्रदाय के मंदिरों से थोडा भिन्न है, राग, भोग एवं श्रृंगार का विशेष महत्व है साथ ही श्रीमदवल्लभाचार्यजी द्वारा प्रतिपादित शुद्वाद्वेत पुष्टिमार्गीय मतानुसार सेवा पूजा का विधान है। इन वजह से दर्शनों के समय में परिवर्तन संभव है।


आपके सुझाव आमंत्रित हैं। shrinathjee@gmail.com


श्रीनाथजी के मन्दिर में दर्शनीय स्‍थल

प्रभु श्रीनाथजी के मन्‍दिर परिसर में ही कई दर्शनीय स्‍थल हैं। प्रभु श्रीनाथजी का मन्दिर अन्‍य मन्‍दिरों के समान गुम्‍बजों, शिखरों वाला न होकर साक्षात श्रीनंदबाबा की हवेलीनुमा बना हुआ है। श्रीनाथजी के निज मन्दिर के उपर आज भी केलूपोश छत है जहॉं श्रीचक्रराज सुदर्शनजी का स्‍वरूप बिराजमान है।

1 निकुंज नायक श्रीनाथजी का निज मन्‍दिर 2 मणि कोठा (जहॉं कीर्तनकार हवेली संगीत का कीर्तन गान करने एवं श्रीछडीदारजी अपनी छडी एवं अन्‍य सेवकगणों के साथ प्रभु सेवा के लिए खडे रहते हैं। 3 गोल देहरी (देहली) जहॉं से निज मन्‍दिर के लिए भेंट चढाई जा सकती है। 4 डोल तिबारी (जहॉं पर खडे हो हम प्रभु श्रीनाथजी के दर्शन कर सकते हैं।) 5 कीर्तनिया गली (जहॉं कीर्तनकार अपने साज आदि रखते हैं व दर्शन के पूर्व व पश्‍चात मधुर राग रागिनीयों का गान करते हैं। 6 श्रीचक्रराज सुदर्शनजी (जो साक्षात भगवान विष्‍णु का ही स्‍वरूप माना जाता है एवं जहाँ ध्‍वजा फहराई जाती है एवं श्रीचक्रराज सुदर्शनजी को राजभोग के दर्शनों के समय इत्र एवं प्रसाद (खाजा/मठरी) का भोग लगाया जाता है। श्रीनाथजी का मन्‍दिर पुष्टिमार्ग में एक मात्र ऐसा मन्‍दिर है जहॉं 7 ध्‍वजा फहराई जाती है। 8 रतन चौक (जहॉं हम दर्शन के लिए डोल तिबारी में प्रवेश कर सकते हैं। ( यहॉं एक ताला लगा हुआ है, जिसे वैष्‍णव भक्‍तजन स्‍वामिनीजी स्‍वरूप मान छूकर अपने को धन्‍य मानते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि प्रभु श्रीनाथजी ने साक्षात इसे छुआ था। इसी स्‍थान पर दीपावली पर भव्‍य कॉंच की हटडी का मनोरथ होता है, जिसमें श्रीनवनीतप्रियजी बिराजते हैं।) 9 कमल चौक (चौक के मध्‍य मार्बल से कमलाकार बना हुआ है, एवं प्रभु श्रीनाथजी के रास स्‍थल के रूप में जाना जाता है।) 10 समाधान विभाग कमल चौक के पास ही है जहाँ मन्दिर में मनोरथ एवं भेंट आदि के राशि जमा कर रसीद प्राप्‍त की जा सकती है। 11 ध्रुव बारी यहीं पर से मुगल सम्राट औरंगजेब ने प्रभुश्रीनाथजी का चमत्‍कार माना अपनी धृष्‍टता छोड दर्शन प्राप्‍त किये थे। इस स्‍थान पर मनौती स्‍वरूप नारियल बॉंधे जाते हैं । 12 अनार चोक यहॉं से कीर्तनिया गली में प्रवेश किया जाता है। 13 प्रसादी भण्‍डार (जहॉं से मन्दिर का प्रसाद प्राप्‍त किया जा सकता है। (विशेष सूचना :- पुष्टिमार्गीय परम्‍परा एवं मर्यादा के अनुसार श्रीनाथजी के भोग की समस्‍त सामग्री मन्दिर के अन्‍दर ही बनती है, जो सेवको द्वारा स्‍वच्‍छता के साथ पवित्रता से बनाई जाती है। मन्दिर में सूखे मेंवें, केसर, इलायची, शक्‍कर, अनाज, दालें एवं अन्‍य भेंट किये जा सकते हैं।) 14 आरती एवं चरणामृत का स्‍थान 15 खासा भण्‍डार जहॉं भोग के लिए सामग्री एकत्रित कर उसे पवित्र किया जाकर मन्‍दिर की रसोई में जाती है। 16 पानघर प्रभु श्रीनाथजी को पान अत्‍यन्‍त प्रिय है और इस हेतु पूरा पानघर बना हुआ है, जहौं विशेष विधि से गीली सुपारी चक्‍की में बारीक पीस एवं तैयार कर चूना कत्‍था के साथ पान का बीडा बनाया जाता है। यही बीडा प्रसादी रूप में ठाकुर जी को धराया जाता है। और वेष्‍णवों को प्राप्‍त होता है। 17 फूलघर ठाकुरजी के श्रृंगार हेतु विविध फूलों के बिना कल्‍पना ही नहीं की जा सकती है। भॉंति भाँति के फूल गुलाब, मोगरा, चमेली, चंपा आदि के कई मन फूल नित्‍य सेवा में काम में लिये जाते हैं। 18 शाकधर यहॉं ठाकुरजी की सेवा के लिए वैष्‍णव शाक भाजी की सेवा कर रसोई में भेजने योग्‍य बनाते हैं। 19 पातलघर श्रीठाकुरजी की सेवा के लिए विविध बर्तन एवं अन्‍य सामग्री यहॉं से उपलब्‍ध कराई जाती है। 20 मिश्रीघर यहॉं श्रीठाकुरजी की सामग्री के लिए मिश्री व अन्‍य सामग्री की सेवा धराई जाती है। 21 पेडाघर गंगामाटी व चंदन व गंगा, यमुना जल मिश्रित पेडे सेवा में धराने के लिए यहीं पर तैयार होते हैं। 22 दूधघर यह विशेष स्‍थान है जहॉं पर रसोई एवं अन्‍य के लिए दूध की सामग्री इत्‍यादि तैयार होती है। 23 खरासघर यहॉं गेहूँ इत्‍यादि अनाज पीस कर तैयार किया जाता है। 24 श्रीगोर्वद्धनपूजा का चौक यहॉं दीपावली एवं अन्‍नकूट के दिन भव्‍य मनोरथ होता है एवं दर्शनों के लिए प्रवेश द्वार यहीं से हैं। 25 सूरजपोल यहीं पर नवधा भक्ति की प्रतीक नौ सिढियां बनी हुई है और हम यहीं से रतन चौक में प्रवेश कर निज मन्दिर की और अलभ्‍य लाभ लेने को जाते हैं। 26 सिंहपोल यहां से कमल चौक में प्रवेश किया जा सकता है। 27 धोली पटिया ये स्‍थान श्रीरसागर स्‍वरूप माना गया है। सिंह पोल यहीं स्थित है। 28 वाचनालय धोली पटिया पर स्थित है जहॉं हम पुष्टिमार्गीय साहित्‍य प्राप्‍त कर सकते हैं साथ ही यहॉं वार्ता श्रवण भी कर सकते हैं। 29 श्रीलालाजी का मन्दिर यहॉं विभिन्‍न वैष्‍णव भक्‍तों द्वारा पुष्टिकृत ठाकुरजी पधराये गये हैं।

30 श्रीनव‍नीतप्रियजी का मन्दिर श्रीनाथजी का प्रतिनिधि स्‍वरूप जो लड्डूगोपाल का स्‍वरूप है। मन्दिर के विभिन्‍न भागों में सभी बडे मनोरथों में श्रीनवनीतप्रियजी का स्‍वरूप ही पधराया जाता है। श्रीनाथजी का स्‍वरूप अचल है।

31 श्री कृष्‍ण भण्‍डार मन्दिर से सम्‍बन्धित समस्‍त सेवा कार्यों के लिए यहीं से कार्यवाही होती है। यहीं पर बहुमूल्‍य धातु एवं अन्‍य कीमती रत्‍न आदि भेंट किये जा सकते हैं

32 सोने चॉंदी की चक्‍की श्री ठाकुरजी की सेवा के लिए प्रतिदिन इतनी केसर कस्‍तूरी की आवश्‍यकता होती है कि उसे पीसने के लिए चक्‍की की आवश्‍यकता पडती है।
33 श्रीमहाप्रभुजी की बैठक श्री मदवल्‍लभाचार्यजी महाप्रभुजी की बैठक के दर्शन कर सकते हैं। यहीं पर मनोरथ इत्‍यादि कराने वालो का समाधान (प्रसादी उपरना वस्‍त्र ओढाकर) किया जाता है।

34 श्री खर्च भण्‍डार यह एक अवर्णनीय स्‍थान है जिसकी महिमा का बखान जितना किया जाए कम है। यहीं पर श्रीठाकुरजी की सेवा के लिए अनाज शुद्ध देशी घी का संग्रह किया जाता है (मन्दिर में सामग्री भोग बनाने में सिर्फ शुद्ध देशी घी का ही प्रयोग होता है।) इसी स्‍थान पर प्रभु श्रीनाथजी के रथ का पहिया रूक गया था और आज भी उस स्‍थान पर श्रीठाकुरजी की चरण चौकी बनी हुई है। इस स्‍थान की मान्‍यता है कि यहॉं सिफं खर्च होता है, कभी खत्‍म नहीं होता है, देने वाला श्रीनाथजी, पाने वाला श्रीनाथजी। पता नहीं कहॉं कहॉं से वैष्‍णव श्रृद्धालु गुमनाम भेंट भेजते रहते हैं और श्रीठाकुरजी के दिन प्रतिदिन के मनोरथों को प्रसाद भोग तैयार होता है। यहॉं पर शुद्ध घी संगंह के लिए इतने कुए बने हुए हैं।

35 भीतर की बावडी यहॉं से निज मन्दिर एवं रसोईघर के लिये पवित्र जल जाता है।
36 मोती महल प्रधान पीठाधीश गोस्‍वामी तिलकायत 108 श्री राकेशजी महाराज श्री का आवास जो महलनुमा बना हुआ है।
37 धूपघडी मोतीमहल की छत पर ही प्राचीन धूपघडी बनी हुई है।
38 घडी इसी के पास प्राचीन घडी भी है जो लकडी एवं रस्‍सी के यन्‍त्रों से चलती है।
39 श्री पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत शिक्षणशाला यहॉं पर एक अलौकिक संगीत की विधा की शिक्षा प्रदान की जाती है जा संगीत की दुनिया में हवेली संगीत के नाम से पहचानी जाती है।
40 श्री पुष्टिमार्गीय पुस्‍तकालय यहॉं पर प्राचीन हस्‍तलिखि‍त एवं मुद्रित कई अमूल्‍य ग्रथ उपलब्‍ध हैं।
41 नक्‍कारखाना यहॉं दर्शनों के समय नक्‍कारे एवं शहनाई का मधुर वादन चलता रहता है। एवं दर्शन आदि की घोषणा होती है।

42 नक्‍कार खाना दरवाजा इस मुक्ष्‍य द्वार से ही मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। इसी के उपर नक्‍कारखाना बना हुआ है।

43 लाल दरवाजा यह दरवाजा श्रीखर्चभण्‍डार के पास बना हुआ है। जो रात्रि के समय बन्‍द रहता है, इसी दरवाजे के पास मुगलों के द्वारा ली गई शपथ का शिलालेख लगा हुआ है।

श्रीनाथद्वारा में आवास सुविधाऍं

श्रीनाथद्वारा मन्दिर मण्‍डल द्वारा संचालित कॉटेज व धर्मशालाएँ : -श्रीनाथद्वारा मन्दिर मण्‍डल द्वारा किफायती दरों पर कॉटेज व धर्मशालाओं का संचालन किया जाता है। जो सभी आय वर्गों के अनुकुल है।कॉटेज :-1 न्‍यू कॉटेज 2 धीरज धाम 3 चीतलवाला कॉटेज 4 बालासिनोर सदन 5धर्मशालाऍं :-1 देहली वाली धर्मशाला 2 अग्रवाल कॉटेज 3 बीसा नीमा धर्मशाला 4 छोटी धर्मशाला 5 डाया भाई की धर्मशाला 6 केशव भवन 7 लक्ष्‍मीनिवास धर्मशाला 8 देलवाला वाली धर्मशाला 9 सखीबाई की धर्मशाला
विभिन्‍न ट्रस्‍टों द्वारा संचालित कॉटेज एवं धर्मशालाएँ :-1 बॉम्‍बे वाली धर्मशाला 2 मणिभाई की धर्मशाला 3 वसनजीलालजी की धर्मशाला 4 लोहाणा अथिति भवन 5 पाटीदार सेवा समाज 6 कोठारी अतिथिशाला 7 खडायता भवन 8 स्‍वामीनारायण भवन
निजी होटल एवं कॉटेज :-मन्दिर के निकट1 गोपाल निवास होटल 2 वल्‍लभदर्शन होटल 3 होटल वृन्‍दा 4 होटल वृन्‍दा निवास 5 वल्‍लभ दर्शन होटल 6 होटल श्रीनाथमन्दिर से आधा किमी दूरी में7 श्रीजी दर्शन 8 श्रीहरिदर्शन 9 शगुन होटल 10 होटल कृष्‍णा 11 बॉम्‍बे कॉटेज 12 पुरोहित विश्रान्ति गृह 13 होटल श्रीरामदर्शनमन्दिर से 1 किमी की दूरी में14 श्रीरामनिवास होटल 15 लक्ष्‍मी पेलेस हौटल 16 वन्‍दना होटल 17 कन्‍हैया पेलेस 18 निकुँज रिवर रिसोर्ट 19 मोती पेलेस होटल 20 सिद्धिविनायक होटल 21 माधव होटलमन्दिर से 2 किमी दूरी में22 होटल उत्‍सव 23 गार्डन न्‍यू होटल 24 श्रीजी रिसोर्ट 25 होटल मीरा
राजस्‍थान पर्यटन विकास निगम की होटल्‍स1 यात्रिका मंगला 2 गोकुल ट्यूरिस्‍ट बॅगला

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श्रीनाथद्वारा की भौगोलिक स्थिति एवं पहुँचने के मार्ग तथा श्रीनाथद्वारा एवं आसपास के दर्शनीय स्‍थल

श्रीनाथद्वारा की भौगोलिक स्थिति एवं पहुँचने के मार्ग तथा श्रीनाथद्वारा एवं आसपास के दर्शनीय स्‍थल
श्रीनाथद्वारा पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय की प्रधान (प्रमुख) पीठ है। यहॉं नंदनंदन आनन्‍दकंद श्रीनाथजी का भव्‍य मन्‍दिर है। जो करोडों वैष्‍णवो की आस्‍था का प्रमुख स्‍थल है, प्रतिवर्ष यहॉं देश विदेश से लाखों वैष्‍णव श्रृद्धालु आते हैं। जो यहॉं के प्रमुख उत्‍सवों का आनन्‍द उठा भावविभोर हो जाते हैं। श्रीनाथजी का तकरीबन 337 वर्ष पुराना मन्‍दिर राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रोडवेज बस स्‍टेण्‍ड से मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहॉं से मन्‍दिर पहुँचने के लिए निर्धारित मूल्‍य पर (वर्तमान में प्रति व्‍यक्ति 3 रूपये) सार्वजनिक परिवहन ऑटो रिक्‍शा सेवा उपलब्‍ध है।श्रीनाथद्वारा दक्षिणी राजस्‍थान में 24/54 अक्षांश 73/48 रेखांश पर अरावली की सुरम्‍य उपत्‍यकाओं के मध्‍य विश्‍वप्रसिद्ध झीलों की नगरी उदयपुर से उत्तर में 48 किलोमीटर दूर राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्‍या 8 पर स्‍थित है।नाथद्वारा से :-उत्तर :- श्रीनाथद्वारा के उत्तर में राजसमन्‍द (17) अजमेर (225) पुष्‍कर (240) जयपुर (385) देहली (625) प्रमुख शहर हैं।दक्षिण :- श्रीनाथद्वारा के दक्षिण में उदयपुर (48) अहमदाबाद (300) बडैदा (450) सूरत (600) मुम्‍बई (800) स्थित हैं।पूर्व :- श्रीनाथद्वारा के पूर्व में मावली ((रेल्‍वे स्‍टेशन) 28) चित्तौडगढ (110) कोटा (180) स्थित हैं।पश्चिम :- फालना (180) जोधपुर (225) स्थित हैं।बस सेवा :- श्रीनाथद्वारा के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, प‍श्चिम में स्थित सभी प्रमुख शहरों से सीधी बस सेवा उपलबध है।ट्रेन सेवा :- श्रीनाथद्वारा के निकटवर्ती रेल्‍वे स्‍टेशन मावली (28) एवं उदयपुर (48) से देश के प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन सेवा उपलब्‍ध है।वायु सेवा :- श्री‍नाथद्वारा के निकटवर्ती हवाई अड्डे डबोक (48) से देश के प्रमुख शहरों के लिए वायुयान सेवा उपलब्‍ध है।
A. श्रीनाथद्वारा एवं आसपास के दर्शनीय स्‍थल1 श्रीविट्ठलनाथजी का मन्दिर एवं श्रीहरिरायमहाप्रभुजी की बैठकजी (मन्दिर के निकट पुष्टिमार्ग की प्रथम पीठ)2 श्रीवनमालीलालजी का मन्दिर एवं मीरा मन्दिर (मन्दिर के निकट)3 श्रीनाथजी की गौशाला (नाथूवास में, मन्दिर से 2 किमी दूर)4 लालबाग एवं संग्रहालय (मन्दिर का बाग, 2 किमी दूर, राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर)श्रीगणेश टेकरी एवं रामभोला (प्रकृति की गोद में सुरम्‍य स्‍थली, जहॉं गणेशजी का सुन्‍दर मन्दिर है साथ ही सुर्यास्‍त का अलौकिक नजारा देखा जा सकता है।) रामभोला में प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। वर्षाकाल में झरने इत्‍यादि अनुपम छटा बिखेरते हैं।5 गणगौर बाग 6 बनास नदी 7 कछुवायी बाग8 गिरीराज पर्वत एवं महेश टेकरी9 श्रीवल्‍लभाश्रम10 नन्‍दसमन्‍द बॉंधश्रीनाथद्वारा एक विहंगम नयनाभिराम दृश्‍य इसे क्‍लिक करें।http://www.wikimapia.org/#y=24927389&x=73817364&z=18&l=19&m=aB. नाथद्वारा से 12 किमी दूर खमनोर ग्राम में11 हरिरायजी की बैठक 12 रक्‍त तलाई (इसी मैदानी क्षेत्र में महाराणा प्रताप एवं मुगल सेना का युद्ध हुआ और इतना रक्‍त बहा कि इस स्‍थान ने तलाई का रूप ले लिया।)13 हल्‍दीघाटी विश्‍व प्रसिद्ध रण स्‍थली जहॉं महाराणा प्रताप और अकबर के बीच युद्ध हुआ था।14 बाघेरी का नाका वृहद पेयजल परियोजना के अर्न्‍तगत बनास नदी पर बनाया गया सुन्‍दर बॉंध15 मचीन्‍द की धूणी, करधर बावजी, भ्रमराज की धूणी, शिशोदा भैरूजीC. कांकरोली (राजनगर या राजसमन्‍द 16 किमी दूरी पर)16 श्रीद्वारिकाधीश का मन्दिर 17 राजसमन्‍द झील 18 नौचौकी पाल 19 दयालशाह का किला 20 गायत्री शक्ति पीठ 21 अणुव्रत विश्‍वभारती भवन 22 रामेश्‍वर महादेव मन्दिर 23 कुन्‍तेश्‍वर (फरारा) महादेव मन्दिरD. श्रीचारभुजा का मन्दिर (मेवाड के प्रसिद्ध मन्दिरों एवं मेवाड के चारधाम में से एक मन्दिर गढबोर ग्राम में नाथद्वारा से 65 किमी दूर)E. श्री रोकडिया हनुमान जी का मन्दिर (गढबोर ग्राम के निकट)F. श्रीरूपनारायण जी का मन्दिर (दूरी 77 किमी)G. कुम्‍भलगढ (55 किमी दूर विश्‍व प्रसिद्ध अजेय किला जिसका परकोटा 36 किलोमीटर के दायरे मे फैला है। यहीं पर पास में वन्‍य जीव अभयानण्‍य भी है। प्रतिवर्ष हजारों देशी विदेशी पर्यटक यहॉं आते हैं।H. परशुराम महादेव का मन्दिर (60 किमी दूर) भगवान परशुराम की तपस्‍या स्‍थली एवं महादेवजी का प्रसिद्ध मन्दिरI. देलवाडा (22 किमी दूर) जैन मन्दिरों एवं पास ही नागदा ग्राम में सास बहु के मन्दिर दर्शनीय है।J. श्री एकलिंगजी (कैलाशपुरी 28 किमी दूर) भगवान शिव का 8वीं शताब्‍दी का भव्‍य प्राचीन विश्‍व प्रसिद्ध मन्दिर एवु निकट ही बप्‍पा रावल पिकनिक स्‍थलK. उदयपुर झीलों की नगरी और राजस्‍थान का कश्‍मीर (48 किमी दूर)1 राजमहल 2 जगदीश मन्दिर 3 पिछोला झील 4 लेक पेलेस 5 गुलाब बाग (वन्‍य जीव शाला) दूध तलाई 7 फतेहसागर झील 8 सौर वेधशाला (Solar Observatory) 9 मोती मगरी 10 नीमचमाता का मन्दिर 11 सहेलियों की बाडी (दर्शनीय सुन्‍दर बगीचा) 12 लोक कला मण्‍डल (कठपूतली शो Puppet Show) 13 शिल्‍पग्राम (राजस्थानी लोक कलाओं के लिए दर्शनीय स्‍थलM. जयसमन्‍द झील एशिया की मीठे पानी की सबसे बडी झीलों में से एक।

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